भारत के परमाणु ऊर्जा सेक्टर में एक बार फिर बड़ा मोड़ देखने को मिल रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा ने न सिर्फ कूटनीतिक रिश्तों को मजबूत किया, बल्कि ऊर्जा सहयोग को भी एक नई राह दे दी। पुतिन ने घोषणा की है कि रूस भारत के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र को उसकी पूरी क्षमता तक पहुंचाने में मदद करेगा। यह सिर्फ एक तकनीकी सहयोग नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा रणनीति को नया आकार देने वाला कदम है।
🔵 कुडनकुलम न्यूक्लियर प्लांट को मिलेगा फुल-पावर सपोर्ट
रूसी सरकारी न्यूक्लियर कंपनी Rosatom के मुताबिक, कुडनकुलम न्यूक्लियर प्लांट के तीसरे रिएक्टर के लिए न्यूक्लियर फ्यूल की पहली खेप भारत भेज दी गई है। यह अपडेट दिखाता है कि दोनों देशों के बीच चल रही न्यूक्लियर पार्टनरशिप अब तेज़ रफ्तार पकड़ रही है।
कुडनकुलम प्लांट—जो तमिलनाडु में स्थित है—पहले से ही भारत के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा प्रोजेक्ट्स में शामिल है। अब जब रूस ने इसे “पूरी क्षमता” पर ऑपरेट करने का वादा किया है, तो भारत की कुल न्यूक्लियर बिजली उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
🔵 4 साल बाद पुतिन की भारत यात्रा और बड़ा संदेश
लंबे अंतराल के बाद भारत पहुंचे पुतिन ने साफ संकेत दिया कि रूस, भारत के साथ अपने ऊर्जा सहयोग को नई ऊंचाई देने के लिए प्रतिबद्ध है। दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान यह ऐलान केंद्र में रहा।
यह कदम भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आने वाले समय में देश की बिजली मांग तेज़ी से बढ़ने वाली है। ऐसे में सुरक्षित, स्थिर और सस्ती ऊर्जा स्रोतों की ज़रूरत और भी बढ़ जाएगी।
🔵 भारत को क्या होगा फायदा?
– ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी
– कुल न्यूक्लियर उत्पादन में तेज बढ़ोतरी
– कोयले पर निर्भरता कम होगी
– स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में मदद
– अंतरराष्ट्रीय साझेदारी और मजबूत
रूस की तकनीक और भारत की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतें एक-दूसरे के लिए बिल्कुल फिट बैठती हैं। इसलिए यह कदम भविष्य के लिए काफी रणनीतिक माना जा रहा है।
🔵 आगे की दिशा
पुतिन का यह ऐलान एक संकेत है कि आने वाले वर्षों में भारत-रूस सहयोग सिर्फ डिफेंस या स्पेस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ऊर्जा सेक्टर भी इस रिश्ते की नई नींव बन सकता है। न्यूक्लियर ऊर्जा के क्षेत्र में यह साझेदारी भारत के ऊर्जा ट्रांजिशन को नई दिशा देगी।
भारत का लक्ष्य 2070 तक नेट-ज़ीरो हासिल करने का है—और इस दिशा में यह फैसला एक मजबूत कदम के रूप में देखा जा रहा है।
