जब CJI भड़क उठे: 2009 के एसिड अटैक केस का सच जिसने हिला दिया पूरा सिस्टम

भारत में न्याय मिलने में होने वाली देरी कोई नई बात नहीं, लेकिन जब किसी एसिड अटैक सर्वाइवर को 16 साल बाद भी इंसाफ का इंतजार करना पड़े, तो यह न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले पर नाराज़गी जताई, जिसमें 2009 में हुए एसिड हमले का ट्रायल आज तक खत्म नहीं हो पाया है।

CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस देरी पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि “अगर नेशनल कैपिटल ऐसी चुनौतियों को भी समय पर नहीं संभाल पाएगी, तो कौन संभालेगा? यह सिस्टम के लिए शर्म की बात है।”

🔴 2009 का दर्द, 2025 तक भी अधूरा न्याय

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि साल 2009 में उस पर एसिड से हमला हुआ था, लेकिन केस लगातार ठहराव का शिकार रहा। 2013 तक कोई प्रगति नहीं हुई और बाद में मामला रोहिणी कोर्ट में चला, जहां अब जाकर यह अंतिम सुनवाई के स्टेज पर पहुंचा है।

इस बीच, पीड़िता सिर्फ अपनी लड़ाई ही नहीं लड़ रही, बल्कि अन्य एसिड अटैक सर्वाइवर्स की मदद के लिए भी काम कर रही है—जो अमानवीय हालातों से गुजरते हैं, अक्सर आर्टिफिशियल फीडिंग ट्यूब और गंभीर विकलांगताओं के सहारे अपना जीवन जीने को मजबूर होते हैं।

⚖️ सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट्स से पेंडिंग एसिड अटैक मामलों का पूरा डेटा चार हफ्तों में जमा करने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों का रोज़ ट्रायल होना चाहिए, ताकि पीड़ितों को समय पर न्याय मिल सके।

CJI ने साफ कहा:
“यह जघन्य अपराध 2009 का है और ट्रायल अभी तक पूरा नहीं हुआ। अगर ऐसी गंभीर केसों का समय पर निपटारा नहीं होगा, तो न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठेंगे।”

🟢 एसिड अटैक सर्वाइवर्स को दिव्यांग श्रेणी में शामिल करने की मांग

याचिकाकर्ता ने यह भी अनुरोध किया कि एसिड अटैक सर्वाइवर्स को दिव्यांग श्रेणी में शामिल किया जाए, जिससे उन्हें सरकारी सुविधाओं और वेलफेयर स्कीम्स का लाभ तेजी से मिल सके।

कोर्ट ने इस बिंदु पर भी केंद्र से जवाब मांगा है और साफ कहा कि ऐसी नीतियों को मजबूत करना आवश्यक है।

🔍 न्याय में देरी, पीड़ा में बढ़ोतरी

किसी भी एसिड अटैक सर्वाइवर के लिए हर दिन मानसिक, शारीरिक और आर्थिक संघर्ष से भरा होता है। ऐसे में 16 साल की न्यायिक देरी सिर्फ कानून की कमजोरी नहीं, बल्कि समाज के प्रति अन्याय भी है।

सुप्रीम कोर्ट की यह सख्ती सही दिशा में उठाया गया कदम है—क्योंकि न्याय तभी सार्थक है जब उसे समय पर दिया जाए।


📝 निष्कर्ष

एसिड अटैक जैसे घिनौने अपराधों में तेज सुनवाई न सिर्फ पीड़िता को राहत देती है बल्कि समाज को भी विश्वास दिलाती है कि कानून ऐसे अपराधों पर कठोर कार्रवाई करने में सक्षम है।

अब देखना यह है कि हाई कोर्ट्स और सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर कितनी तेजी से काम करती हैं—क्योंकि 2009 से शुरू हुई यह लड़ाई अब और लंबी नहीं चलनी चाहिए।

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