फुजियान: चीन का नया विमानवाहक — हिंद-प्रशांत में क्यों बढ़ा सकता है तनाव?

चीन ने हाल ही में अपने सबसे उन्नत विमानवाहक युद्धपोत फुजियान को नौसेना में शामिल कर के अपनी समुद्री क्षमताओं में एक बड़ा कदम बढ़ाया है। यह जहाज इलेक्ट्रोमैग्नेटिक लॉन्च सिस्टम (EMALS) से लैस है — वही आधुनिक तकनीक जो अमेरिकी फ़ोर्ड-श्रेणी के वाहकों पर इस्तेमाल होती है। चलिए इसे आसान और आकर्षक तरीके से समझते हैं — तकनीक से लेकर रणनीतिक मायने तक, और जानें कि भारत के लिए क्या निहितार्थ हो सकते हैं।

फुजियान क्या है? (संक्षेप में)

  • सबसे आधुनिक चीनी कैरियर: जून 2022 में जलपरिक्षेप के बाद फुजियान को हाल ही में औपचारिक तौर पर कमीशन किया गया।

  • EMALS तकनीक: पारंपरिक जंप-स्टार्ट (स्कूप) के बजाय इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट से विमान तेज़ी से और कम तनाव में उड़ान भरते हैं — इससे ऑपरेशन तेज़ और ईंधन की बचत होती है।

  • क्षमता: 80,000 टन तक का विस्थापन; रिपोर्ट्स के मुताबिक 50 से अधिक विमान, संभवतः 70–100 एयरक्राफ्ट तक ले जाने का डिज़ाइन। इसमें बहु-रोल विमानों और मरीन वर्ज़न J-35 जैसे जेट लॉन्च करने की क्षमता बताई जा रही है।

  • न्यूक्लियर-पावर की चेतावनी: मीडिया विश्लेषणों में इसे लंबे संचालन और उच्च आत्मनिर्भरता वाला जहाज़ बताया जा रहा है।

तकनीकी खासियतें जो इसे ख़ास बनाती हैं

  • EMALS (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापल्ट): विमानों को अधिक सुरक्षित और नियंत्रित तरीके से लॉन्च करना।

  • सपाट उड़ान-डेक और लिफ्ट्स: एक साथ कई विमानों की हैंडलिंग और तेजी से ऑपरेटिंग साइकिल।

  • उच्च स्वचालन व आधुनिकीकरण: रडार, सेंसर्स और लड़ाकू सिस्टम के नए पैकेज से जहाज़ की मारक क्षमता बढ़ती है।

रणनीतिक मायने — क्यों यह अमेरिका से आगे निकलने जैसा माना जा रहा है?

EMALS जैसी तकनीक के सहारे चीन अब लंबे समय तक समुद्र में प्रभाव दिखा सकता है। इससे उसे:

  • दक्षिण चीन सागर और उससे आगे के क्षेत्रों में प्रोजेक्शन बढ़ाने में मदद,

  • समुद्री सुरक्षा, सप्लाई-लाइन और रणनीतिक कवरेज पर प्रभाव, और

  • क्षेत्रीय समुद्री संतुलन बदलने का अवसर मिल सकता है।

भारत के लिए क्या है चिंता की बात?

  • हिंद महासागर में प्रोजेक्शन: फुजियान और इसके सहायक बेड़े के संचालन से चीन का प्रभाव हिंद महासागर तक फैल सकता है — जहाँ भारत की समुद्री सीमाएँ और बीते-समय की रणनीतिक महत्ता है।

  • नौसैनिक संतुलन: वर्तमान में भारत के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर (INS विक्रमादित्य और INS विक्रांत) हैं; लेकिन तकनीकी और संख्यात्मक अंतर बढ़ने से क्षेत्र में चुनौती मिलने की संभावना है।

  • तैयारी व सहयोग: भारत-शिपिंग रूट्स, द्विपक्षीय रणनीति, और मल्टीलेटरल समुद्री सुरक्षा सहयोगों को मजबूती देने की ज़रूरत बढ़ेगी — साथ ही अपनी नौसैनिक क्षमताओं के आधुनिकीकरण पर भी ध्यान देना होगा।

क्या करें — तफ़सील में रणनीतिक रास्ते

  1. नौसैनिक आधुनिकीकरण की गति बनाए रखना — रोबोटिक्स, एईडेड सेंसर और एयर-डिफेंस सिस्टम में निवेश।

  2. क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाना — इंडो-पैसिफिक साझेदारों के साथ अभ्यास, जानकारी साझा करना और लॉजिस्टिक-सहयोग।

  3. डिफेंस-डिप्लोमेसी को तेज़ करना — समुद्री नियमों और नौवहन स्वतंत्रता पर साझेदारी मजबूत करना।

 निष्कर्ष

फुजियान सिर्फ एक नया युद्धपोत नहीं है — यह चीन की समुद्री प्रोजेक्शन की दिशा में एक बड़ा कदम है। तकनीकी उन्नति और जहाज की क्षमता इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं। भारत के लिए यह समय है सतर्क रहने, रणनीति परखने और क्षेत्रीय सहयोगों को सक्रिय करने का — ताकि हिंद-प्रशांत में संतुलन और सुरक्षा सुनिश्चित रह सके।

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