AI में पीछे रह जाएगा अमेरिका? ट्रंप से H-1B वीजा फैसले पर भारतीयों के समर्थन में उतरे US सांसद !

एक बार फिर H-1B वीज़ा को लेकर अमेरिका में सियासी गर्मी बढ़ गई है. अमेरिकी सांसदों के एक समूह ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से हाल ही में जारी किए गए H-1B वीजा से जुड़े नए आदेश को तुरंत वापस लेने की मांग की है. उनका कहना है कि यह कदम न केवल अमेरिका की तकनीकी बढ़त को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी पर भी गहरा असर डालेगा.

दरअसल, 19 सितंबर को जारी एक आदेश के तहत ट्रंप प्रशासन ने नए H-1B वीजा आवेदन पर 100,000 अमेरिकी डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) की भारी फीस लगा दी है। इसके अलावा कई कड़े प्रतिबंध भी जोड़े गए हैं। अमेरिकी सांसदों का कहना है कि इस फैसले से भारत जैसे देशों से आने वाले प्रतिभाशाली प्रोफेशनल्स हतोत्साहित होंगे — जबकि भारत ही पिछले साल H-1B वीजा धारकों में 71% हिस्सेदारी रखता था। 🇮🇳 भारत से जुड़ा बड़ा असर कैलिफोर्निया से कांग्रेस सदस्य जिमी पनेटा, अमी बेरा, सालुद कार्बाजल, और जूली जॉनसन ने एक संयुक्त पत्र में ट्रंप से अपील की है कि वे इस निर्णय पर पुनर्विचार करें। उनका कहना है कि भारत के साथ अमेरिका का रिश्ता केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि तकनीकी सहयोग और नवाचार पर भी आधारित है। एच-1बी प्रोग्राम के ज़रिए भारतीय इंजीनियर्स, वैज्ञानिक और टेक एक्सपर्ट्स ने अमेरिका के AI, साइबर सिक्योरिटी, और डिजिटल डेवलपमेंट में अहम भूमिका निभाई है।

💡 “AI के भविष्य को खतरा” सांसदों ने अपने पत्र में साफ लिखा है कि अगर ये पाबंदियां जारी रहीं, तो अमेरिका की AI इंडस्ट्री को भारी नुकसान हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे समय में जब चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एडवांस्ड टेक्नोलॉजीज में आक्रामक रूप से निवेश कर रहा है, अमेरिका को अपनी प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करना ज़रूरी है। 🔍 STEM सेक्टर पर संकट H-1B वीजा का सीधा संबंध STEM क्षेत्रों से है। सांसदों ने कहा कि ये पेशेवर अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां नहीं छीनते, बल्कि नई नौकरियां और नवाचार के अवसर पैदा करते हैं। अगर यह प्रतिबंध जारी रहता है, तो अमेरिका अपनी “ब्रेन पावर” खो सकता है — जिसका सीधा फायदा चीन जैसे देशों को मिलेगा।

🔚 निष्कर्ष H-1B वीजा की बहस इमिग्रेशन तक सीमित नहीं है बल्कि यह अमेरिका के टेक्नोलॉजी फ्यूचर और ग्लोबल पावर बैलेंस से जुड़ी है। दशकों से भारतीय प्रतिभा ने अमेरिका के डिजिटल ग्रोथ को नई ऊंचाइयां दी हैं और अगर ट्रंप सरकार अपने फैसले पर अड़ी रही, तो यह कदम खुद अमेरिका के लिए “AI युग का आत्मघात” साबित हो सकता है।

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